Lord Shiva

Lord Shiva
HAR HAR MAHADEV

Friday, October 25, 2013

एक बार जरूर पढ़िए-


'ओ... रिक्शे वाले, आजाद नगर चलोगे? 'सज्जन व्यक्ति जोर से चिल्लाया।
'हाँ-हाँ क्यों नहीं?' रिक्शे वाला बोला।
'कितने पैसे लोगे?'
'बाबू जी दस रुपए।'
'अरे दस रुपए बहुत ज्यादा हैं मैं पाँच रुपए दूँगा।'
रिक्शे वाला बोला, 'साहब चलो आठ...'
'अरे नहीं मैं पाँच रुपए ही दूँगा।' रिक्शेवाला सोचने लगा, दोपहर हो रही है जेब में केवल बीस रुपए हैं, इनसे बच्चों के लिए एक समय का भरपेट खाना भी पूरा नहीं होगा।
मजबूर होकर बोला ठीक है साब बैठो। रास्ते में रिक्शेवाला सोचता जा रहा था, आज का इंसान दूसरे इंसान को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं समझता। ये भी नहीं सोचा यहाँ से आजाद नगर कितनी दूर है, पाँच रुपए कितने कम हैं। मैं भी क्या करूँ? मुझे भी रुपयों की जरूरत है इसलिए इसे पाँच रुपए में पहियों की गति के साथ उसका दिमाग भी गतिशील था।
आजाद नगर पहुँचने के बाद जैसे ही वह रिक्शे से नीचे उतरा। एक भिखारी उसके सामने आ गया। सज्जन व्यक्ति ने अपने पर्स से दस रुपए उस भिखारी को दे दिए और पाँच रुपए रिक्शे वाले को।
रिक्शेवाला बोला, साहब मेरे से अच्छा तो यह भिखारी रहा जिसे आपनेदस रुपए दिए। मैं इतनी दूर से लेकर आया और मेरी मेहनत के सिर्फ पाँच रुपए?'
सज्जन व्यक्ति बोला, 'भिखारी को देना पुण्य है। मैंने उसे अधिक रुपए देकर पुण्य कमाया है।'
'और जो मेरी मेहनत की पूरी मजदूरी नहीं दी ऐसा करके क्या तुम पाप के भागीदार नहीं?' रिक्शेवाले ने कहा। उसकी बात सुनते ही सज्जन व्यक्ति को क्रोध आ गया। वह बोला -'तुम लोगों से मुँह लगाना ही फिजूल है।'
दान देने से अच्छा है किसी मेहनत करने वाले को उसकी मेहनत का सही फल देना वर्ना एक दिन फर्जी भिखारीयो की भीड इक्कठी हो जायेगी, दान की जगह मदद करे, आप इतने रईस नही की दान करे इतने गरीब भी नही कि मदद ना कर सके, अच्छा लगा तो शेयर करे

Monday, October 21, 2013

The Meaning of Ardhnarishwar

The Meaning of Ardhnarishwar

Shiv is  panchamahabhootas. The panchamahabhootas with which the entire creation is said to be made .

Shakti is energy, power . The energy which we called cosmic energy without this energy universe will not survive.

"Shakti ke bina Shiva Shava hai"

This sentence not only has deep meanings hidden in it but also echoes the importance of Shakti (the feminine).

Shiva, without Shakti, as material manifestations is equivalent to things which are "jada". It is only after Shakti pervades in is when "Jada" becomes "Chaitanya" and worthwhile. The panchamahabhootas with which the entire creation is said to be made of has no meaning if these panchamahabhootas dont have their inherent energies. These, with the material they constitue and the energies they carry together, are useful and result in "shristi".
Hence as a bulb without electricity, a flower without its fragrance, a body without the soul have no meaning, so does Shiva have no meaning without its feminine half Shakti. they both compliment to make Shiva, Shiva, and Shakti, Shakti.

A meaning of the eternal bond of love is also enunciated by this sentence. A "Purush" without "paurush" is of no use, and this "paurush" comes to him with the advent of "prakriti" in his life. Thus this sentence helps to understand the importance of "prakriti" for a "purush" and hence their eternal bond.



Ardh is creation, imagination and Narishwar is shakti, srishti, energy of this universe.......

What makes him a Lord of the lords




Shiva is the oldest worshipped deity in the world. Unborn and immortal, the most powerful destructor yet the savior, he is being worshipped everywhere by all, since infinity. Right from the tips of the Kailas where they say, he resides, to the southernmost corner of the land at Rameshwara, Shiva is worshipped everywhere in India. While he is the deity of Sadhus who forsake materialistic world in search of the spiritual or sometimes of the ghostly world; he is also being worshipped by the people who enjoy family life. From warrior Kings to Vaidik Brahmins, from rich to poor, from technocrats to tribals, all worship the Mahadeva. Shiva accepts delicate flowers from the artists as he is the master of all fine arts while on the other hand, Ghost catcher Tantricks offer him skulls and ashes and he accepts that with equal pleasure.

Shiva rules over ghosts and also rules over arts. He blesses the demons and also blesses the gods. He forsakes the worldly relations; still is a family man. He is destroyer and creator, too. He is hot tempered and naive too. He is fearful. He is lovable. He is ugly. He is attractive. He is mystic. He is simple. A brutal killer, a passionate Lover, a caring husband, a loving Father; still out of all this, Shiva is a Yogi who enjoys Samadhi for ages together. How many personalities reside without any conflict in this one person? I think this is what makes him a Lord of the lords.

Sunday, October 20, 2013

तुलसीदास जी ने कलयुग का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है

री रामचरितमानस के पाँचवे काण्ड उत्तर काण्ड मेँ तुलसीदास जी ने कलयुग का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रन्थ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥
भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म ।
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥
बरन धरम नहि आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी॥
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहि मान निगम अनुसासन॥
मारग सोई जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोई जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंम्भ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहई सब कोई॥
सोई सयान जो परधन हारी। जो कर दँभ सो बड आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलजुग सोई गुनवंत बखाना॥
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सो ग्यानी सो बिरागी॥
जाकेँ नख अरु जटा बिसाला। सोई तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥
दो॰ असुभ बेष भूषन धरे भच्छाभच्छ जे खाहिँ।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिँ॥
सो॰ जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ। मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥
नारि बिबस नर सकल गोसाईँ। नाचहि नट मर्कट की नाईँ॥
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिँ ग्याना। मेलि जनेऊ लेहिँ कुदाना॥
सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव विप्र श्रुति संत विरोधी॥
गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिँ नारी पर पुरुष अभागी॥
सौभागिनीँ विभूषन हीना। विधवन्ह के सिँगार नवीना॥
गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनहि एक नहि देखा॥
हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुरु घोर नरक महुँ परई॥
मातु पिता बालकन्हि बोलावहिँ। उदर भरै सोई धर्म सिखावहिँ॥
दो॰ ब्रह्म ग्यान बिनु नारि नर कहहिँ न दूसरि बात।
कौडी लागि लोभ बस करहि विप्र गुर घात॥
बादहिँ सृद्र द्विजन्ह सन हम तूम्ह ते कछु घाटि।
जानइ ब्रह्म सो विप्रवर आँखि देखावहिँ डाटि।

क्या आप तुलसीदास जी के लिखे एक भी शब्द को झुठला सकते हैँ?

Thursday, October 10, 2013

3 प्रश्न


अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- 
‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?और वह करता क्या है?’’ 
बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा-
 ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ 
बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! 
ईश्वर करता क्या है?’’ 
बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।
औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया।
औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे
कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
औरत ने पूछा – “पर क्यों?”
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”
फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया।
उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला– “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता हैं कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता हैं कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
माता-पिता ने कहा – “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए”
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था।
आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया हैं। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।

कुछ तथ्य

कुछ तथ्य दिए हुए हैं...उन पर अमल करने
का प्रयास किया जाए तो जिंदगी काफी खूबसूरत हो जायेगी!
1.खुद की कमाई से कम खर्च हो ऐसी जिन्दगी बनाओ..!

2. दिन मेँ कम से कम 3 लोगो की प्रशंसा करो..!

3. खुद की भुल स्वीकार ने मेँ कभी भी संकोच मत करो..!

4. किसी के सपनो पर हँसो मत..!

5. आपके पीछे खडे व्यक्ति को भी कभी कभी आगे जाने का मौका दो..!

6. रोज हो सके तो सुरज को उगता हुए देखे..

7. खुब जरुरी हो तभी कोई चीज उधार लो..!

8. किसी के पास से कुछ जानना हो तो विवेक से दो बार पुछो..!

9. कर्ज और शत्रु को कभी बडा मत होने दो..!

10. ईश्वर पर पुरा भरोसा रखो..!

11. प्रार्थना करना कभी मत भुलो, प्रार्थना मेँ अपार शक्ति होती है..!

12. अपने काम से मतलब रखो..!

13. समय सबसे ज्यादा किमती है, इसको फालतु कामो मेँ खर्च मत करो..!

14. जो आपके पास है, उसी मेँ खुश
रहना सिखो..!

15. बुराई कभी भी किसी कि भी मत
करो करो,क्योकिँ बुराई नाव मेँ छेद समान है,बुराई छोटी हो बडी नाव तो डुबो ही देती है..!

16. हमेशा सकारात्मक सोच रखो..!

17. हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाओ..!

18. कोई काम छोटा नही होता हर काम
बडा होता है जैसे कि सोचो जो काम आप कर रहे हो अगर आप वह काम आप नही करते हो तो दुनिया पर क्या असर होता..?

19. सफलता उनको ही मिलती है जो कुछकरते है

20. कुछ पाने के लिए कुछ खोना नही बल्कि कुछ करना पडता है...!!

*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

Wednesday, October 9, 2013

A dedication to Shiva

You are the soul, the inner fire...Shining star, the serpent of desire. The trident of power, three points to serve, the cycle of life, death and rebirth.


Consort of Parvati, the goddess fair, The river Ganges caught in the mane of your hair. Ash on your body, the remnants of ruin, Yet grace is the gift you impart to your children.


Third eye blazing with sacred light, burning demons with your chakra's sight. Dancing within a ring of flames, Lord Nataraja of the many names.


You are the one within the soul, The underlying essence that connects us all. Chaos and order, you are both of these, the breathe of life churning the ancient seas.


Tigerskin a symbol of victory over every adversity, The snake symbolising your mastery of reality. The crescent moon shining the cycle of life, You represent the balance with Parvati as your wife.


Om Namah Shivaya we chant, As you, Lord Shiva, weave creations dance. Shivoham, Shivoham the people pray... Knowing that we are all one and the same.

समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक

एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके
पिताजी बैठे थे.
राह में एक भयंकर तूफ़ान आया और लड़की ने पिता से
पूछा -- अब हम
क्या करें?
पिता ने जवाब दिया -- कार चलाते रहो.
तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और
तूफ़ान और भयंकर होता जा रहा था.
अब मैं क्या करू ? -- लड़की ने पुनः पूछा.
कार चलाते रहो. -- पिता ने पुनः कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन
तूफ़ान की वजह से
रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा -- मुझे कार
रोक देनी चाहिए.
मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ. यह भयंकर है और
प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है. उसके पिता ने फिर
निर्देशित किया -- कार रोकना नहीं. बस
चलाते रहो.
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर
लिया था किन्तु लड़की ने कार
चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ
साफ़ दिखने लगा है.
कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने
देखा कि तूफ़ान थम
गया और सूर्य निकल आया. अब उसके पिता ने
कहा -- अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ
सकती हो.
लड़की ने पूछा -- पर अब क्यों?
पिता ने कहा -- जब तुम बाहर
आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे,
वे
अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं. चूँकि तुमने कार चलाने के
प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो.
यह कहानी उन लोगों के लिए एक है जो अब कठिन समय
से गुजर रहे हैं.
प्रयास करना कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए. निश्चित
ही जिन्दगी के कठिन
समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक
आपके जीवन में
पुनः आयेगी.

Monday, October 7, 2013

When we fast for Lord Shiva






When we fast for Lord Shiva, we are not fasting solely because he wants to see us sacrifice ourselves to prove our love. Lord Shiva is not a God who is looking for us to cause harm to ourselves to show our love.

Fasting for Lord Shiva is actually good for us. Fasting for one day helps our body detoxify and release all the old fat deposits by burning nothing else. This will make us feel lighter and healthier.

When we fast on Mondays, in many situations, we can conduct a fruit fast. Have all the non glycemic fruits you want for one day (and milk as well). During this day, since there is no other food in our system, our body gets to better absorb the vitamins of the fruits, and therefore we can better complete our body's requirements.

शिवलिंग की पूजा को कितना महत्व क्यों?





शिवलिंग की पूजा को कितना महत्व क्यों?
सभी देवी-देवताओं की साकार रूप की पूजा होती है लेकिन भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा साकार और निराकार दोनों रूप में होती है। साकार रूप में शिव मनुष्य रूप में हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये और बाघ की छाल पहने नज़र आते हैं। जबकि निराकार रूप में भगवान शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं। शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूप में शिव की पूजा कल्याणकारी होती है लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है।

शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए। इस दौरान शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी होती है। केवल शिवलिंग की ही पूजा क्यों होती है, इस विषय में शिव पुराण कहता है कि महादेव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है।

इस संदर्भ में एक कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद होने लगा। दोनों निर्णय के लिए भगवान शिव के पास गये। विवाद का हल निकालने के लिए भगवान शिव साकार से निराकार रूप में प्रकट हुए। शिव का निराकार रूप अग्नि स्तंभ के रूप में नज़र आ रहा था।

ब्रह्मा और विष्णु दोनों इसके आदि और अंत का पता लगाने के लिए चल पड़े लेकिन कई युग बीत गए लेकिन इसके आदि अंत का पता नहीं लगा। जिस स्थान पर यह घटना हुई, वह अरूणाचल के नाम से जाना जाता है।

ब्रह्मा और विष्णु को अपनी भूल का एहसास हुआ। भगवान शिव साकार रूप में प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों ही बराबर हैं। इसके बाद शिव ने कहा, पृथ्वी पर अपने ब्रह्म रूप का बोध कराने के लिए मैं लिंग रूप में प्रकट हुआ इसलिए अब पृथ्वी पर इसी रूप में मेरे परमब्रह्म रूप की पूजा होगी। इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी।

Wednesday, October 2, 2013

तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है।

एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः " तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है।
हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बारबार आता है।
यह क्या बात है ?"

बीरबलः "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा।
आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए। "

चार - पाँच दिन बीत गये।

बीरबल ने एक आयोजन किया।
अकबर को यमुनाजी में नौकाविहार कराने ले गये।
कुछ नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी।
उस समय यमुनाजी छिछली न थीं।
उनमें अथाह जल था।

बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया।

सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था।
मोम का बालक पुतला बनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबर का बेटा लगे।

दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था।

नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब ' अरे .... रे ... रे .... ओ.... ओ.... .' कहकर दासी ने स्त्री चरित्र करके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी।

अपने बालक को बचाने - खोजने के लिए अकबर धड़ाम से यमुना में कूद पड़ा।

खूब इधर - उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला।

वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था।
अकबर कहने लगाः "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है।
तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया।"

बीरबलः " जहाँ पनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं , बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए ऐसा किया गया था।

आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े।
उस समय आपको पता तो था ही इन सब नावों में कई तैराक बैठे थे , नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे!
आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ?
हम कूदकर आपके बेटे की रक्षा करते!"

अकबरः " बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों को कहने की फुरसत कहाँ रहती है ?
खुद ही कूदा जाता है।

बीरबलः "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े , ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर - वैगम्बर को नहीं भेजते , वह खुद ही प्रगट होते हैं।

वे अपने बेटों की रक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं।

आपके उस दिन के सवाल का यही जवाब है

जीवन में जप-तप से बड़ा कर्म है सच्चे मन से मनुष्य की सेवा।

एक प्रसिद्ध संत मृत्यु के बाद जब स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचे तो चित्रगुप्त उन्हें रोकते हुए बोले, 'रुकिए संत जी, अंदर जाने से पहले लेखा-जोखा देखना पड़ता है।' चित्रगुप्त की बात संत को अच्छी नहीं लगी। वह बोले, 'आप यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी मुझे जानते हैं। '

इस पर चित्रगुप्त बोले, 'आपको कितने लोग जानते हैं, इसका लेखा-जोखा हमारी बही में नहीं होता, इसमें तो केवल कर्मों का लेखा-जोखा होता है।' इसके बाद वह बही लेकर संत के जीवन का पहला हिस्सा देखने लगे। यह देखकर संत बोले, 'आप मेरे जीवन का दूसरा भाग देखिए क्योंकि जीवन के पहले हिस्से में तो मैंने लोगों की सेवा की है, उनके दु:ख दूर किए हैं। जबकि जीवन के दूसरे हिस्से में मैंने जप-तप और ईश्वर की आराधना की है। दूसरे हिस्से का लेखा-जोखा देखने पर आपको वहां पुण्य की चर्चा अवश्य मिलेगी।'

संत की बात मानकर चित्रगुप्त ने उनके जीवन का दूसरा हिस्सा देखा तो वहां उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सब कुछ कोरा था। वह फिर से उनके जीवन के आरंभ से उनका लेखा-जोखा देखने लगे। आरंभ का लेखा-जोखा देखकर वह बोले, 'संत जी, आपका सोचना उल्टा है। आपके अच्छे और पुण्य के कार्यों का लेखा-जोखा जीवन के आरंभ में है।' यह सुनकर संत आश्चर्यचकित होकर बोले, 'यह कैसे संभव है?'

चित्रगुप्त बोले, 'संत जी, जीवन के पहले हिस्से में आपने मनुष्य की सेवा की, उनके दु:ख-दर्द कम किए। उन्हीं पुण्य के कार्यों के कारण आपको स्वर्ग में स्थान मिला है, जबकि जप-तप और ईश्वर की आराधना आपने अपनी शांति के लिए की है। इसलिए वे पुण्य के कार्य नहीं हैं। यदि केवल आपके जीवन के दूसरे हिस्से पर विचार किया जाए तो आपको स्वर्ग नहीं मिलेगा।' चित्रगुप्त की बात सुनकर संत समझ गए कि जीवन में जप-तप से बड़ा कर्म है सच्चे मन से मनुष्य की सेवा।

A Doctor's advice to a business man...



एक डॉक्टर ने अपने अति-महत्वाकांक्षी और आक्रामक बिजनेसमैन मरीज को एक
बेतुकी लगनेवाली सलाह दी. बिजनेसमैन ने डॉक्टर को बहुत कठिनाई से यह
समझाने की कोशिश की कि उसे कितनी ज़रूरी मीटिंग्स और बिजनेस डील वगैरह
करनी हैं और काम से थोड़ा सा भी समय निकालने पर बहुत बड़ा नुकसान हो
जाएगा:

“मैं हर रात अपना ब्रीफकेस खोलकर देखता हूँ और उसमें ढेर सारा काम बचा
हुआ दिखता है” – ब
िजनेसमैन ने बड़े चिंतित स्वर में कहा.

“तुम उसे अपने साथ घर लेकर जाते ही क्यों हो?” – डॉक्टर ने पूछा.

“और मैं क्या कर सकता हूँ!? काम तो पूरा करना ही है न?” – बिजनेसमैन
झुंझलाते हुए बोला.

“क्या और कोई इसे नहीं कर सकता? तुम किसी और की मदद क्यों नहीं लेते?” –
डॉक्टर ने पूछा.

“नहीं” – बिजनेसमैन ने कहा – “सिर्फ मैं ही ये काम कर सकता हूँ. इसे तय
समय में पूरा करना ज़रूरी है और सब कुछ मुझपर ही निर्भर करता है.”

“यदि मैं तुम्हारे पर्चे पर कुछ सलाह लिख दूं तो तुम उसे मानोगे?” –
डॉक्टर ने पूछा.

यकीन मानिए पर डाक्टर ने बिजनेसमैन मरीज के पर्चे पर यह लिखा कि वह
सप्ताह में आधे दिन की छुट्टी लेकर वह समय कब्रिस्तान में बिताये!

मरीज ने हैरत से पूछा – “लेकिन मैं आधा दिन कब्रिस्तान में क्यों बैठूं?
उससे क्या होगा?”

“देखो” – डॉक्टर ने कहा – “मैं चाहता हूँ कि तुम आधा दिन वहां बैठकर
कब्रों पर लगे पत्थरों को देखो. उन्हें देखकर तुम यह विचार करो कि
तुम्हारी तरह ही वे भी यही सोचते थे कि पूरी दुनिया का भार उनके ही कंधों
पर ही था. अब ज़रा यह सोचो कि यदि तुम भी उनकी दुनिया में चले जाओगे तब
भी यह दुनिया चलती रहेगी. तुम नहीं रहेगो तो तुम्हारे जगह कोई और ले
लेगा. दुनिया घूमनी बंद नहीं हो जायेगी!”

मरीज को यह बात समझ में आ गयी. उसने झुंझलाना और कुढ़ना छोड़ दिया.
शांतिपूर्वक अपने कामों को निपटाते हुए उसने अपने बिजनेस में खुद के लिए
और अपने कामगारों के लिए काम करने के बेहतर वातावरण का निर्माण किया.