Lord Shiva

Lord Shiva
HAR HAR MAHADEV

Friday, October 25, 2013

एक बार जरूर पढ़िए-


'ओ... रिक्शे वाले, आजाद नगर चलोगे? 'सज्जन व्यक्ति जोर से चिल्लाया।
'हाँ-हाँ क्यों नहीं?' रिक्शे वाला बोला।
'कितने पैसे लोगे?'
'बाबू जी दस रुपए।'
'अरे दस रुपए बहुत ज्यादा हैं मैं पाँच रुपए दूँगा।'
रिक्शे वाला बोला, 'साहब चलो आठ...'
'अरे नहीं मैं पाँच रुपए ही दूँगा।' रिक्शेवाला सोचने लगा, दोपहर हो रही है जेब में केवल बीस रुपए हैं, इनसे बच्चों के लिए एक समय का भरपेट खाना भी पूरा नहीं होगा।
मजबूर होकर बोला ठीक है साब बैठो। रास्ते में रिक्शेवाला सोचता जा रहा था, आज का इंसान दूसरे इंसान को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं समझता। ये भी नहीं सोचा यहाँ से आजाद नगर कितनी दूर है, पाँच रुपए कितने कम हैं। मैं भी क्या करूँ? मुझे भी रुपयों की जरूरत है इसलिए इसे पाँच रुपए में पहियों की गति के साथ उसका दिमाग भी गतिशील था।
आजाद नगर पहुँचने के बाद जैसे ही वह रिक्शे से नीचे उतरा। एक भिखारी उसके सामने आ गया। सज्जन व्यक्ति ने अपने पर्स से दस रुपए उस भिखारी को दे दिए और पाँच रुपए रिक्शे वाले को।
रिक्शेवाला बोला, साहब मेरे से अच्छा तो यह भिखारी रहा जिसे आपनेदस रुपए दिए। मैं इतनी दूर से लेकर आया और मेरी मेहनत के सिर्फ पाँच रुपए?'
सज्जन व्यक्ति बोला, 'भिखारी को देना पुण्य है। मैंने उसे अधिक रुपए देकर पुण्य कमाया है।'
'और जो मेरी मेहनत की पूरी मजदूरी नहीं दी ऐसा करके क्या तुम पाप के भागीदार नहीं?' रिक्शेवाले ने कहा। उसकी बात सुनते ही सज्जन व्यक्ति को क्रोध आ गया। वह बोला -'तुम लोगों से मुँह लगाना ही फिजूल है।'
दान देने से अच्छा है किसी मेहनत करने वाले को उसकी मेहनत का सही फल देना वर्ना एक दिन फर्जी भिखारीयो की भीड इक्कठी हो जायेगी, दान की जगह मदद करे, आप इतने रईस नही की दान करे इतने गरीब भी नही कि मदद ना कर सके, अच्छा लगा तो शेयर करे

Monday, October 21, 2013

The Meaning of Ardhnarishwar

The Meaning of Ardhnarishwar

Shiv is  panchamahabhootas. The panchamahabhootas with which the entire creation is said to be made .

Shakti is energy, power . The energy which we called cosmic energy without this energy universe will not survive.

"Shakti ke bina Shiva Shava hai"

This sentence not only has deep meanings hidden in it but also echoes the importance of Shakti (the feminine).

Shiva, without Shakti, as material manifestations is equivalent to things which are "jada". It is only after Shakti pervades in is when "Jada" becomes "Chaitanya" and worthwhile. The panchamahabhootas with which the entire creation is said to be made of has no meaning if these panchamahabhootas dont have their inherent energies. These, with the material they constitue and the energies they carry together, are useful and result in "shristi".
Hence as a bulb without electricity, a flower without its fragrance, a body without the soul have no meaning, so does Shiva have no meaning without its feminine half Shakti. they both compliment to make Shiva, Shiva, and Shakti, Shakti.

A meaning of the eternal bond of love is also enunciated by this sentence. A "Purush" without "paurush" is of no use, and this "paurush" comes to him with the advent of "prakriti" in his life. Thus this sentence helps to understand the importance of "prakriti" for a "purush" and hence their eternal bond.



Ardh is creation, imagination and Narishwar is shakti, srishti, energy of this universe.......

What makes him a Lord of the lords




Shiva is the oldest worshipped deity in the world. Unborn and immortal, the most powerful destructor yet the savior, he is being worshipped everywhere by all, since infinity. Right from the tips of the Kailas where they say, he resides, to the southernmost corner of the land at Rameshwara, Shiva is worshipped everywhere in India. While he is the deity of Sadhus who forsake materialistic world in search of the spiritual or sometimes of the ghostly world; he is also being worshipped by the people who enjoy family life. From warrior Kings to Vaidik Brahmins, from rich to poor, from technocrats to tribals, all worship the Mahadeva. Shiva accepts delicate flowers from the artists as he is the master of all fine arts while on the other hand, Ghost catcher Tantricks offer him skulls and ashes and he accepts that with equal pleasure.

Shiva rules over ghosts and also rules over arts. He blesses the demons and also blesses the gods. He forsakes the worldly relations; still is a family man. He is destroyer and creator, too. He is hot tempered and naive too. He is fearful. He is lovable. He is ugly. He is attractive. He is mystic. He is simple. A brutal killer, a passionate Lover, a caring husband, a loving Father; still out of all this, Shiva is a Yogi who enjoys Samadhi for ages together. How many personalities reside without any conflict in this one person? I think this is what makes him a Lord of the lords.

Sunday, October 20, 2013

तुलसीदास जी ने कलयुग का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है

री रामचरितमानस के पाँचवे काण्ड उत्तर काण्ड मेँ तुलसीदास जी ने कलयुग का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रन्थ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥
भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म ।
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥
बरन धरम नहि आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी॥
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहि मान निगम अनुसासन॥
मारग सोई जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोई जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंम्भ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहई सब कोई॥
सोई सयान जो परधन हारी। जो कर दँभ सो बड आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलजुग सोई गुनवंत बखाना॥
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सो ग्यानी सो बिरागी॥
जाकेँ नख अरु जटा बिसाला। सोई तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥
दो॰ असुभ बेष भूषन धरे भच्छाभच्छ जे खाहिँ।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिँ॥
सो॰ जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ। मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥
नारि बिबस नर सकल गोसाईँ। नाचहि नट मर्कट की नाईँ॥
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिँ ग्याना। मेलि जनेऊ लेहिँ कुदाना॥
सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव विप्र श्रुति संत विरोधी॥
गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिँ नारी पर पुरुष अभागी॥
सौभागिनीँ विभूषन हीना। विधवन्ह के सिँगार नवीना॥
गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनहि एक नहि देखा॥
हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुरु घोर नरक महुँ परई॥
मातु पिता बालकन्हि बोलावहिँ। उदर भरै सोई धर्म सिखावहिँ॥
दो॰ ब्रह्म ग्यान बिनु नारि नर कहहिँ न दूसरि बात।
कौडी लागि लोभ बस करहि विप्र गुर घात॥
बादहिँ सृद्र द्विजन्ह सन हम तूम्ह ते कछु घाटि।
जानइ ब्रह्म सो विप्रवर आँखि देखावहिँ डाटि।

क्या आप तुलसीदास जी के लिखे एक भी शब्द को झुठला सकते हैँ?

Thursday, October 10, 2013

3 प्रश्न


अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- 
‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?और वह करता क्या है?’’ 
बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है? अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा-
 ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ 
बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! 
ईश्वर करता क्या है?’’ 
बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।
औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया।
औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे
कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
औरत ने पूछा – “पर क्यों?”
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”
फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया।
उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला– “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता हैं कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता हैं कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
माता-पिता ने कहा – “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए”
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था।
आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया हैं। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।

कुछ तथ्य

कुछ तथ्य दिए हुए हैं...उन पर अमल करने
का प्रयास किया जाए तो जिंदगी काफी खूबसूरत हो जायेगी!
1.खुद की कमाई से कम खर्च हो ऐसी जिन्दगी बनाओ..!

2. दिन मेँ कम से कम 3 लोगो की प्रशंसा करो..!

3. खुद की भुल स्वीकार ने मेँ कभी भी संकोच मत करो..!

4. किसी के सपनो पर हँसो मत..!

5. आपके पीछे खडे व्यक्ति को भी कभी कभी आगे जाने का मौका दो..!

6. रोज हो सके तो सुरज को उगता हुए देखे..

7. खुब जरुरी हो तभी कोई चीज उधार लो..!

8. किसी के पास से कुछ जानना हो तो विवेक से दो बार पुछो..!

9. कर्ज और शत्रु को कभी बडा मत होने दो..!

10. ईश्वर पर पुरा भरोसा रखो..!

11. प्रार्थना करना कभी मत भुलो, प्रार्थना मेँ अपार शक्ति होती है..!

12. अपने काम से मतलब रखो..!

13. समय सबसे ज्यादा किमती है, इसको फालतु कामो मेँ खर्च मत करो..!

14. जो आपके पास है, उसी मेँ खुश
रहना सिखो..!

15. बुराई कभी भी किसी कि भी मत
करो करो,क्योकिँ बुराई नाव मेँ छेद समान है,बुराई छोटी हो बडी नाव तो डुबो ही देती है..!

16. हमेशा सकारात्मक सोच रखो..!

17. हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाओ..!

18. कोई काम छोटा नही होता हर काम
बडा होता है जैसे कि सोचो जो काम आप कर रहे हो अगर आप वह काम आप नही करते हो तो दुनिया पर क्या असर होता..?

19. सफलता उनको ही मिलती है जो कुछकरते है

20. कुछ पाने के लिए कुछ खोना नही बल्कि कुछ करना पडता है...!!